कुछ यूं उसने ज़िन्दगी बसर की साथ मेरे
जो थोड़ा था उसे ही ज्यादा जिया साथ मेरे
मेरी मेहनत और मशक्कत से जो था हासिल
एक दरिया के मानिंद ज़िन्दगी के सफ़र में
बस मुहब्बत की और मुहब्बत में रहा साथ मेरे
उसके अपनेपन की मिठास तो देखिये
मुझसे दूर रह कर भी वो रहा साथ मेरे
वो रहा साथ मेरे मुझसे नाराज़ होकर भी
मुझसे उदास होकर भी वो रहा साथ मेरे
-अमित-

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