तुम्हारा प्रेम सहज था सांसों की तरह,
तुम्हारा प्रेम क़ीमती था, जैसे साँसे कीमती होती है
तुम रोज आती थी जाने के लिए
सांसों की तरह
खींचकर अक्सर भर लेता था तुमको
खुद में साँसों की तरह
दो पल ठहर कर निकल जाती थी तुम
मेरे बंधन से जैसे सांस निकल जाती है
बहुत कोशिश की तुमको रोकने की खुद में
पर हाथ छुड़ाकर निकल जाना फितरत थी तुम्हारी
और एक दिन तुम निकल गई
न वापस आने के लिए
और मैं तुम्हारे इंतज़ार में एक टक
देखता रहा खुली आंखों से...
- अमित -

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