इंतज़ार है मुझे किसी के होंठो के स्पर्श का
है संगीत मेरे अन्दर मौन सोया हुआ
खुद अपने आप में खोया हुआ
मैं साध्य भी हूँ , साधना का हेतु भी
मुझमे आहत नाद , मैं अनहद नाद का सेतु भी
मैं खुद में खाली, अवकाश से पूर्ण
संगीत जगता है मुझमे सम्पूर्ण
कोई मुझे अपने होंठो से लगाकर चूम ले
मुझमे जन्मे संगीत में झूम ले
तो वो खुदा हो जाए
खुद से जुदा हो जाए...
No comments:
Post a Comment