मेरे मन के प्यासे अधरों को, तेरे अधरों की प्यास लगी....
तेरे रूप का मादक यौवन, पी लूं पर मैं मुख न खोलूँ
जीवन की क्षण भंगुर बेला में, रास रंग का अमृत घोलूँ
मेरे जीवन की सांसों को, अब ये अंतिम आस लगी
मेरे मन के प्यासे अधरों को......
इन कटाक्ष नयनों से प्रियतम, मुझको मत बर्बाद करों
मुक्त ह्रदय से, मौन अधर से, प्रिय मुझसे संवाद करो
मेरे गीत की हर पंक्ति को, तेरे आने की प्यास लगी
मेरे मन के प्यासे अधरों को......
तेरे अधरों के कम्पन से, मन वीणा के तार बजे
तेरी हंसी की एक सरगम से, गीतों में है प्राण जगे
मत तडपाओ अब आ जाओ, मन को मन की आस लगी
मेरे मन के प्यासे अधरों को.....
- अमित -
